भीष्म ने किए थे यह घोर पाप, इसलिए मिली तीरों की सैया पे.


नमस्कार दोस्तों,
दोस्तों, यह कहानी है द्वापर युग की, आप सभी ने महाभारत के बारे में जरूर सुना या पढ़ा होगा. महाभारत से यदि भीष्मपितामह का किरदार निकल दिया जाए तो पूरी महाभारत ही ख़त्म हो जायेगी। महाभारत के युद्ध में जो कुरुक्षेत्र के मैंदान में हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहणी सेना मारी गई, इस युद्ध के समापन और सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने के बाद पांडवों सहित श्री कृष्ण पितामह भीष्म से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर के लिए लौट गए।
पर लौटने से पूर्व श्री कृष्ण को रोककर पितामह ने उनसे एक प्रश्न किया जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। पितामह ने श्री कृष्ण से पूछा " हे द्वारिकाधीश मधुसूदन, यह मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं आज बाणों की सैया पर पड़ा हुआ हूँ?'' यह बात सुनकर कृष्ण ने मुस्कराते हुए पितामह भीष्म से पूछा, 'हे पितामह क्या आपको अपने पूर्व जन्मों का ज्ञान है?'' इस पर पितामह ने कहा, 'हाँ''। हे श्रीकृष्ण मुझे अपने सौ पूर्व जन्मों का ज्ञान है कि मैंने किसी व्यक्ति का कभी अहित नहीं किया|
इस पर श्रीकृष्ण मुस्कराये और बोले पितामह आपने ठीक कहा कि आपने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, लेकिन एक सौ एक वें पूर्वजन्म में आज की तरह तुमने तब भी राजवंश में जन्म लिया था और अपने पुण्य कर्मों के फलस्वरूप बार-बार राजवंश में जन्म लेते रहे, लेकिन उस जन्म में जब आप युवराज थे, तब एक बार आप शिकार खेलकर जंगल से निकल रहे थे, तभी आपके घोड़े के अग्रभाग पर एक करकैंटा एक वृक्ष से नीचे गिरा। आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, तब वह बेरिया के पेड़ पर जा कर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गये क्योंकि वह पीठ के बल ही जाकर गिरा था? करकेंटा जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार करकेंटा अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, 'हे युवराज! जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ, ठीक इसी प्रकार तुम भी होना।'' तो, हे पितामह भीष्म! तुम्हारे पुण्य कर्मों की वजह से आज तक तुम पर करकेंटा का श्राप फलित नहीं हो पाया था।
जब हस्तिनापुर की राज सभा में द्रोपदी का चीर-हरण होता रहा और आप अपना कर्त्तव्य भूलकर मूक दर्शक बनकर देखते रहे। जबकि आप सक्षम थे उस अबला पर अत्याचार होने से रोकने में, फिर भी आपने दुर्योधन और दुःशासन को नहीं रोका। इसी कारण पितामह आपके सारे पुण्यकर्म का नाश हो गये और करकेंटा का 'श्राप' आप पर फलित हो गया।
अतः पितामह प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों का फल कभी न कभी तो भोगना ही पड़ता है प्रकृति सर्वोपरि है, इसका न्याय सर्वोपरि और प्रिय है। इसलिए पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी व जीव जन्तु को भी भोगना पड़ता है और कर्मों के अनुसार ही जन्म होता है।

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