नमस्कार दोस्तों,लगातार मिल रही हार और गिरती लोकप्रियता से क्रैश लैंडिंग कर रहे कांग्रेस नुमा जहाज को गिरने से बचाने और सफलता की ऊंचाई पर एक नई उड़ान भरने के लिए तैयार करने वाले सचिन पायलट के लिए ऐसा कर पाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। लेकिन अपने शांत स्वाभाव के लिए जाने जाने वाले यह युवा नेता, पार्टी के अंदर चल रहे इन अंतर्विरोधों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।
सचिन पायलट का जन्म उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुआ और वे नोएडा के वैदपुरा गांव के निवासी हैं। पायलट को राजनीति अपने पिता से विरासत में मिली है. उनके पिता राजेश पायलट पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेहद करीबी नेता और एक केंद्रीय मंत्री थे, जबकि सचिन अब कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक उम्मीदवार राहुल गांधी के सबसे विश्वास पात्र हैं।
आइये जानते हैं सचिन पायलट के जीवन से जुड़ी कुछ निजी बातें और समझते हैं इस युवा के व्यक्तित्व को....
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सचिन पायलट अपने काम में किसी भी प्रकार की देरी बिलकुल भी पसंद नहीं करते. नए विचारों को खुले मन से सुनने और समझने की क़ाबलियत रखने वाले कॉर्पोरेट मामलों के केंद्रीय मंत्री और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष हैं सचिन पायलट। सचिन अगर कुछ करने की ठान लेते हैं तो उन्हें डिगाना बहोत ही कठिन कार्य हो जाता है। केंद्र में पहली बार संचार राज्यमंत्री का कार्यभार संभालने वाले पायलट के सामने एक दिलचस्प वाकया सामने आया जब वे अरुणाचल प्रदेश के तवांग दौरे पर थे. इस घटना ने उन्हें नौकरशाही के दावपेच से निकलकर लोगों से काम कराने का हुनर सीखा गया।
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बात तब की है जब सचिन पायलट, सीमा सुरक्षा बल के जवानों को सैटेलाइट फोन बांटने गए थे. सैटेलाइट फोन लेते वक्त एक जवान ने उनसे कहा, ''सर थैंक्यू वेरी मच. लेकिन यह हम लोगों को बहुत ही महंगा पड़ता है.” उस जवान ने बताया कि केवल एक मिनट बात करने के 50 रु. देने पड़ते हैं. यह सुनकर सचिन के मन में सवाल उठा कि दिल्ली में बैठकर आम लोग एक मिनट के लिए केवल चवन्नी देते हैं और 10,000 रु. महीने तनख्वाह पाने वाला सीमा पर तैनात जवान जो बर्फ में खड़े होकर गोलियां खा रहा है, उसे अपने घर बात करने के लिए 50 रु. प्रति मिनट देने पड़ रहे हैं जो की गलत है।
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दिल्ली पहुंचकर पायलट ने अधिकारियों को इस दर में कटौती के आदेश दिए. लेकिन पायलट बताते हैं, ''अधिकारी फाइल को इधर-उधर घुमाते हुए नखरे दिखाने लगे तब मैंने फौरन तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम से मिलकर लिखित मंजूरी ले ली. फिर भी अधिकारी काम करके नहीं दे रहे थे. और आदतन काम को ताल रहे थे।”
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यह पायलट की कोशिशों का ही नतीजा है की 50 रु. की कॉल दर 5 रु प्रति मिनट हो गई. वे कहते हैं, ''हमारे चार लाख अर्द्धसैनिक बलों के लोग हैं. इन सभी के लिए कॉल दर 1 अप्रैल, 2011 से 5 रु. प्रति मिनट कर दिए गए।
अक्सर कुर्ता-पायजामा और सर्दियों में हाफ जैकेट पहनने वाले 36 वर्षीय पायलट का नए आइडिया को लेकर बहुत स्पष्ट सोच है. उनका मानना है, ''योजना फेल होने के डर से पहल ही नहीं करना अच्छी बात नहीं है. सचिन की यही सोच उन्हें अब तक के राजनैतिक करियर में बेदाग रखे हुए है, जबकि संचार मंत्रालय में उन्होंने २जी घोटाले के आरोपी पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा के साथ बतौर राज्यमंत्री काम किया. हालांकि इस मसले पर पायलट कहते हैं, ''यह घोटाला मेरे पदभार के समय से पहले का है. इस मामले में अदालत अपना निर्णय करेगी, लेकिन हमारी सरकार ने कभी किसी आरोप पर कार्रवाई से संकोच नहीं किया.”
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हालांकि सचिन विरासत की राजनीति पर कहते हैं, ''मैं नहीं समझता हूं कि बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है कि कौन किस कोख से पैदा हुआ है, फर्क इससे पड़ता है कि आप अपने राजनैतिक जीवन में किस तरह से काम करते हैं. कितना आप लोगों को साथ लेकर चल सकते हैं क्योंकि हर व्यक्ति किसी न किसी धर्म-जाति से बंधा हुआ है.”
जमीनी नेता को किस तरह काम करना चाहिए, यह उन्होंने अपने पिता से सीखा है. पायलट कहते हैं, ''मेरे पिताजी कहा करते थे कि दिल्ली में सरकार ने हमें यह बंगला इसलिए दिया है कि यहां हम लोगों को बिठाकर बात कर सकें, उन्हें लगना चाहिए कि उनकी बात सुनने वाला कोई है.”
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इस सीख को अपने राजनैतिक जीवन में पायलट ने भी साकार किया है. सुबह 7 बजे उठकर चाय की चुस्की के साथ अखबार पढऩा और 2-3 घंटे आम लोगों से मिलना उनका रुटीन है. समय मिलने पर कभी-कभार व्यायाम भी कर लेते हैं. खाने में राजमा-चावल उन्हें इस कदर पसंद है कि बचपन में वे कई बार लगातार हफ्ते भर तक इसे खाते थे.
धर्म में उनकी बहुत रुचि नहीं है. वे बताते हैं, ''मैं बहुत ज्यादा कर्मकांड में विश्वास नहीं करता. लेकिन मेरी मां होली-दीवाली भजन या पूजा कराती हैं तो मैं वहां चुपचाप जरूर बैठ जाता हूं.” लेकिन पायलट को फिल्म देखने का बहुत शौक है. हालांकि यहां भी वे जल्दबाजी नहीं दिखाते, बल्कि पहले हफ्ता-दस दिन इंतजार करते हैं और उस फिल्म की बहुत चर्चा होती है तो ही देखते हैं.
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लेकिन उन्हें घर में बैठकर फिल्म देखना पसंद नहीं, बल्कि जब भी फिल्म देखने का मन हुआ पायलट किसी भी मॉल के सिनेमा हॉल में चले जाते हैं. कॉलेज के समय शूटिंग के अलावा बैडमिंटन, क्रिकेट, फुटबॉल के शौकीन पायलट ने 4-5 साल तक नेशनल स्तर पर शूटिंग में अवार्ड हासिल किए हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन और अमेरिका के व्हार्टन स्कूल से एमबीए करने के बाद पायलट ने बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो में काम किया. उसके बाद वे जनरल मोटर्स में भी दो साल नौकरी कर चुके हैं. लेकिन 6 सितंबर, 2012 को वे अपनी जिंदगी का महत्वपूर्ण क्षण मानते हैं जब 6-8 महीने की कड़ी मेहनत और परीक्षा के बाद उन्हें टेरीटोरियल आर्मी में लेफ्टिनेंट का पद मिला.
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26 साल की उम्र में सांसद बनकर देश के सबसे युवा सांसद का खिताब पा चुके पायलट उस दिन देश के पहले केंद्रीय मंत्री बन गए जो टेरीटोरियल आर्मी में नियमित रूप से जुड़े. वे इसे अपने पिता का सपना बताते हैं. हालांकि पिता के असामयिक देहांत का जख्म आज भी उनके जेहन में हरा है. पायलट कहते हैं, ''बहुत कठिन समय रहा परिवार के लिए. हमेशा जख्म हरे से रहते हैं.”
पायलट का विवाह भी राजनैतिक सुर्खियों में रहा था. 2004 में उनकी शादी जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी सारा से हुई. दोनों का मजहब अलग होने की वजह से स्वाभाविक दिक्कतें आईं, लेकिन उन्होंने इसे सहजता से पार किया. वे अपने इसी संबंध की वजह से जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-एनसी गठबंधन सरकार की धुरी बने.
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अब तक अपनी राजनीतिक सोंच और समझ से तेज़ी से आगे बढ़ रहे पायलट की चुनौती राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से काफी बढ़ गई है. राहुल गांधी ने कांग्रेस उपाध्यक्ष के रूप में पार्टी की कमान संभालने के बाद से युवा नेतृत्व पर फोकस किया है. सचिन उसी कड़ी के एक अहम् अंग माने जाते हैं. उनके मुताबिक, ''परिवर्तन सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक सोच में भी है कि पार्टी को एक नए सांचे में ढालना है. इसके चलते जमीनी स्तर पर लोगों को रि-कनेक्ट करना है ताकि पार्टी की सोच को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके और अधिक लोगों को पार्टी से जोड़ा जा सके।

लेकिन यह बदलाव राजस्थान में कितना कारगर होगा? वसुंधरा सरकार के खिलाफ कांग्रेस के प्रदर्शन में भीड़ का न जुटना और अब सरदारशहर सीट से कांग्रेस विधायक भंवरलाल शर्मा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मुलाकात के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ बोलना यह साबित करता है कि पायलट की राह आसान नहीं है. अब जब कांग्रेस राजस्थान में एक बार फिर सत्ता में आ रही है तो अब देखना यह है की सचिन पायलट, कांग्रेस को सही राजनैतिक उड़ान कैसे दे पाते है और इसकी जनता के बीच लैंडिंग किस प्रकार करते हैं।
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