अगर रोबोट्स अपना काम करना बंद करके इंसान की भक्ति करने लगे तो क्या होगा?

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दोस्तों सभी धार्मिक जन जिन भी ईश्वर को मानते हैं उन्हें अपना निर्माता मानकर उनकी पूजा पाठ आराधना भक्ति अपने अपने धार्मिक रिवाजों के अनुसार करते हैं । क्या आपने यह सोचा है कि हमारे ईश्वर क्या हमारे पूजा पाठ एवं भक्ति से प्रसन्न होते हैं या फिर ऐसा करके हम उन्हें दुखी करते हैं। दोस्तों ईश्वर ने हमें अपनी सारी शक्ति दी है हमे बुद्धि एवं शक्ति से नवाजा है ।

उन्होंने हमे अपनी बुद्धि का अंश दिया ताकि हम योजना बना सकें और हम जो चाहते हैं उसका निर्माण कर सकें। आज हम विज्ञान की मदद से जो भी चाहते हैं उसे मानने की ताकत रखते हैं और यह वैज्ञानिक सोच हम इंसानों को ईश्वर द्वारा दिया गया सबसे बड़ा वरदान हैं पर दुख तब होता है जब हम इस विज्ञान की मदद से ईश्वर द्वारा दी गई जिम्मेदारी को पूरा करने अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए मेहनत करने के बजाए हम अपने निर्माणकर्ता उस ईश्वर की आराधना करके उनकी पूजा पाठ करके उन्हे खुश करने की कोशिश करते हैं। ताकि वो खुश होकर हमे वो सबकुछ दे  जो हम चाहते हैं। क्या आपको लगता है की भगवान चापलूस पसंद हैं। अगर उन्हें अपनी वाहवाही ही करानी होती तो वो आपको विज्ञान और बुद्धि की शक्ति ही क्यों देते? क्या आपने कभी यह सोचा है? नही न, तो जरा सोचिए।


मानलो की आप एक वैज्ञानिक हो और आपने एक ऐसा रोबोट बनाया जो इंसानों की तरह सोच सकता है और हर वो काम कर सकता है जो इंसानों के भी बस की बात नही। अब मान लो की आपके इस रोबोट के पास इंसानों की तरह सोचने समझने की भी शक्ति है और उस रोबोट ने आपको पहचान लिया की आप ने ही उसे बनाया है याने कि आप उसके भगवान हो, जैसे की हम इंसान अपने बनाने वाले को अपना भगवान मानते हैं।


दोस्तों अब जरा सोचकर देखिए की यदि आपका रोबोट आपके द्वारा दिए गए कार्यों को करने के बजाए आपकी भक्ति करने लगे आपकी तपस्या करने लगे तो क्या आप खुश होंगे। यदि आपका रोबोट आपसे यह आस्था रखने लगे की वो आपकी पूजा पाठ करके आपको खुश करेगा और आप खुश होकर बदले में रोबोट के सारे काम कर दोगे तो क्या यह आपको सचमे अच्छा लगेगा जरा सोचकर बताइए?
मुझे पता है आप यही कहेंगे की ऐसे रोबोट को बनाने का क्या मतलब और शायद आप उसे डिस्मेंटल करके उसके सारे पुर्जे किसी और काम में उपयोग करने का सोचे।


दोस्तों हमारे भगवान भी हमारे लिए ऐसा ही सोचते हैं। यही वजह है की जीवन में कुछ भी कर्म न करके केवल भक्ति करने वाले दधीचि ऋषि के शरीर को सुरभि गाय से तब तक चटवाया गया जब तक की उनकी अस्थि पंजर बाहर न निकल जाए और फिर उनकी अस्थि को वज्र बनाने के लिए उपयोग में लिया गया।

आस्था और विज्ञान


यह एक छोटा सा उदाहरण है जिससे मैने यह समझाने की कोसी की है की ईश्वर को भक्त या उपासक नही चाहिए बल्कि उन्हे संसार को अपने मेहनत से संवारने वाला मनुष्य चाहिए धन्यवाद।

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