जानिये चैत्र नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त एवं स्थापना विधि।

जय माता दी दोस्तों,

माता के सभी भक्तों एवं मेरे सभी पाठकों को चैत्र नवरात्र एवं हिन्दू नववर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं। 

क्यों मानते हैं गुड़ी पड़वा त्यौहार:  

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दोस्तों, चैत्र नवरात्र के पहले दिन को हिंदी नव-वर्ष के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है। ऐसी भी मान्यता है की सृष्टि कर्ता ब्रम्हा ने इसी दिन से दुनिया के सृजन का कार्य प्रारम्भ किया था इसलिए इसे सृष्टि का पहला दिन भी कहा जाता है। गुड़ी पड़वा त्यौहार हिंदी नव-वर्ष के आगमन का सूचक है और इसे चैत्र नवरात्र के पहले दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों के मुख्य द्वार को फूल और तोरण से सजाते हैं और आँगन में रंग बिरंगी रंगोली बनाते हैं।

गुड़ी पड़वा को दिन की सुरुवात पारम्परिक रूप से तेलस्नान करके किया जाता है। स्नान के बाद घर के पूजा स्थल की पूजा की जाती है और फिर नीम के पत्तों का सेवन किया जाता है। आपको बता दें की नीम को आयुर्वेद के साथ साथ हिन्दू धर्म में भी विशेष स्थान प्राप्त है एवं इसे पूज्य मना गया है। नीम के पत्तों को विशेष लाभकारी एवं पुण्यकारी माना जाता है।

चैत्र नवरात्र के पहले दिन अर्थात कल ( 6 अप्रैल 2019 ) को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त एवं स्थापना विधि :

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चैत्र नवरात्र के पहले दिन माँ दुर्गा के सभी उपासक माता को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं और अपने घर या मंदिर में कलश की स्थापना करते हैं। कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। अगर कलश स्थापना अपने सही मुहूर्त में न की जाए तो भक्त या उपासक उसके शुभ फलों से वंचित रह जाते हैं। कल 6 अप्रैल को इस वर्ष के चैत्र नवरात्र का पहला दिन है और कल ही कलश की भी स्थापना की जानी है। आइए जानते क्या है शुभ मुहूर्त और कैसे करनी है कलश स्थापना। 

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कल दिन के वक़्त 11 बजकर 58 मिनट से लेकर 12 बजकर 49 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त है। अभिजीत मुहूर्त को कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है पर इस वक़्त चर राशि कर्क का लग्न होने की वजह से इसे शुभ मुहूर्त नहीं माना जा सकता। अतः सुबह 6 बजकर 09 मिनट से 10 बजकर 21 मिनट तक कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त है। 

आवश्यक सामग्री एवं स्थापना विधि:

जौ बोनें के लिए मिटटी का पात्र, साफ़ मिटटी, मिटटी का एक छोटा घड़ा ढक्कन के साथ, गंगा जल, सुपारी, सिक्का, आम की पत्तियां, अक्षत/कच्चे चांवल, मौली या रक्षा शुत्र, जौं , इत्र , पुष्प, पुष्पमाला, नारियल, लाल कपड़ा एवं दूर्वा घांस। 

कलश स्थापना विधि: 

माता की प्रतिमा की स्थापना से पहले नवरात्र में कलश स्थापना की  जाती है। कलश स्थापना से पूर्व इस प्रकार कलश को तैयार करें :


सबसे पहले मिटटी का एक बड़ा पात्र लें और उसमें थोड़ी मिटटी डालें। मिटटी डालने के बाद उसमे जौं के बीज डाल दें। जौं डालने के बाद सारी मिटटी पात्र में डाल दें और फिर थोड़ा बीज डालकर पानी से मिटटी को भिगो दें। अब कलश और इस मिटटी वाले पात्र के गर्दन पर मौली धागा बांध दें। पात्र और कलश पर तिलक लगाएं। कलश को गंगा जल से भर दें। इस जल में सुपारी इत्र, दूर्वा, अक्षत और सिक्का डाल दें। अब इस कलश के किनारों पर अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। एक नारियल को कुछ सिक्कों के साथ लाल कपड़े से लपेट लें और उस पर रक्षा सूत्र बाँध लें। इन सभी तैयारियों के बाद जमीन को अच्छी तरह साफ़ करके मिटटी का जौं बोया हुआ पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन के ऊपर नारियल को रख दें। 
कलश तैयार हो चूका है अब आप नवरात्र के चलते तक पुरे नौ दिन कलश का ध्यान रखना है और जौं वाले पात्र में नियमित रूप से पानी डालते रहना है। 

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