आइये जानते हैं क्या है सबरीमाला मंदिर से जुड़ा विवाद.


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नमस्कार दोस्तों,
दोस्तों, हम आपको बता दें की महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवादों में घिरी सबरीमाला मंदिर के कपाट शुक्रवार 16 तारीख की शाम पांच बजे पारम्परिक मासिक पूजा के लिए खोल दिए गए. मंदिर परिसर के बाहर विरोध-प्रदर्शन और तनाव की स्थिति को देखते हुए पुलिस प्रशासन अलर्ट पर है. मंदिर परिसर के आस पास काफी मात्रा में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर उम्र की महिलाओं को मंदिर प्रवेश की अनुमति दे दी गई है. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूर्व 10 से 50 वर्ष के उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं थी. अर्थात केवल 10 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों और 50 से साधिक उम्र की बुज़ुर्ग महिलाओं को ही प्रवेश की अनुमति थी. या सीधे शब्दों में कहा जाए तो केवल उन्ही महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति थी जो की माहवारी के दायरे में नहीं आते थे.
आइये जानते हैं क्या है सबरीमाला मंदिर से जुड़ा यह विवाद.
साल 2006 में मंदिर के मुख्या ज्योतिष परपपनगडी उन्नीकृष्णन ने मंदिर ट्रस्ट के सभी सदस्यों के सामने यह बात कही थी की मंदिर में स्थापित अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं और वह इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश किया है. इसके बाद ही कन्नड़ अभिनेता प्रभाकर की पत्नी जयमाला ने दवा किया था की उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से अयप्पा नाराज़ हुए. उन्होंने अपनी भूत स्वीकारते हुए कहा की वे इस गलती की प्रायश्चित करना चाहती है. अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया था कि 1987 में अपने पति के साथ जब वे मंदिर में दर्शन करने गई थी तो भीड़ कि वजह से धक्का लगने कि वजह से वे गर्भगृह पहुंच गई और भगवन अयप्पा के चरणों में गिर गई. जयमाला का कहना था कि वहां पुजारी ने उन्हें फूल भी दिए थे.
सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थी याचिका
अभिनेत्री जयमाला के द्वारा अयप्पा को स्पर्श करने के दावे के बाद मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने के इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया. 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर कि. इसके बावजूद अगले दस सालों तक महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का मामला कोर्ट में अटका रहा.

सुप्रीम कोर्ट ने किया था हस्तक्षेप
सबरीमाला मंदिर मामले में मिली याचिका पर कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से महिलाओं को मंदिर प्रवेश कि अनुमति न देने पर जवाब तालाब किया. बोर्ड ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि भगवान् अयप्पा ब्रम्हचारी थे और इस वजह से मंदिर में वही बच्चियां एवं महिलाऐं प्रवेश कर सकती हैं, जिनका मासिक धर्म शुरू न हुआ हो या फिर ख़त्म हो चूका हो. ७ नवम्बर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि वह सबरीमाला मंदिर में हर उम्र कि महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है.
सबरीमाला मुद्दे पर खूब हुई राजनीति
जबसे सबरीमाला मामले का उजागर हुआ है तभी से सभी राजनैतिक पार्टी इस मामले पर अपनी राजनीति कर रहे हैं. साल 2006 में मंदिर में प्रवेश कि अनुमति से जुड़ी एक याचिका दायर किये जाने के बाद 2007 में एलडीएफ सरकार ने प्रगतिशील व सकारात्मक नजरिया दिखाया था. एलडीएफ के रुख से उलट कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बाद में अपना पक्ष बदल दिया था. चुनाव हरने के बाद यूडीएफ सरकार ने कहा था कि वह सबरीमाला में १० से ५० वर्ष वर्ष कि आयु वाली महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ हैं. यूडीएफ का तर्क था कि यह परंपरा १५०० साल से चली आ रही है. बीजेपी ने इस मुद्दे को दक्षिण में पेअर ज़माने के मौके कि तरह देखा और बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के महिलाओं के हक़ में आये फैसले के विरोध में हजारों बीजेपी कार्यकर्ताओं ने केरल राज्य सचिवालय कि और मार्च किया. महिला अधिकार संगठनों ने इसे मुद्दा बनाया साथ ही भूमाता ब्रिगेड कि तृप्ति देसाई ने भी सबरीमाला मंदिर आणि कि बात कही. 
कोर्ट ने माना महिलाओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन.

महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर रोक के इस मामले पर ११ जुलाई २०१६ को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा इसलिए जरुरी है क्योंकि यह संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है और इन अधिकारों के मुताबिक महिलाओं को प्रवेश से रोका नहीं जाना चाहिए. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था और जुलाई, २०१८ में पांच जजों कि एक बेंच ने मामले कि सुनवाई शुरू कि थी.
महिलाओं के हक में आया ऐतिहासिक फैसला
इसी साल २८ सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासि फैसला सुनते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश कि अनुमति दे दी है. कोर्ट ने साफ़ कहा है कि हर उम्र वर्ग कि महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारी संस्कृति में महिलाओं का स्थान आदरणीय है. यहां महिलाओं को देवी कि तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है. पुरुष प्रधान समाज कि इस दोगली मानसिकता को स्वीकारा नहीं जा सकता.

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