यहाँ से जानिये वृंदा से तुलसी बनने की पूरी कथा और धार्मिक महत्व.


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नमस्कार दोस्तों,
दोस्तों, भारत में शायद ही कोई ऐसा हिन्दू घर, मंदिर या अन्य कोई धार्मिक स्थल होगा जहां के आँगन में तुलसी का पौधा न हो. घर-घर में पूजी जाने वाली तुलसी परम पावन और पवित्र मानी जाती है. भगवान विष्णु अपना भोग तुलसी पत्र के बिना स्वीकार नहीं करते. आखिर क्यों है तुलसी का इतना महत्व. कहाँ से आया और कैसे हुई तुलसी के पौधे की उत्पत्ति. आइये जानते हैं इसकी पौराणिक कथा.
पौराणिक काल में एक वृंदा नाम की लड़की थी. वृंदा का जन्म राक्षस कुल में हुआ था. राक्षस कुल में जन्म होने के बावजूद वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी. वह बड़े ही भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा किया करती थी. जब वह बड़ी हुई तो उसका विवाह राक्षस राज जालंधर(शंखचूर्ण) से हो गया. जालंधर की उत्पत्ति भगवान शिव के रौद्र रूप के तेज़ से हुआ था. जब धरती उसका तेज़ सम्हालने में असक्षम रही तो उसे समुद्र के हवाले कर दिया गया इसलिए जालंधर को समुद्र पुत्र भी कहा जाता है. वृंदा अत्यंत ही पतिव्रता स्त्री थी. वह हमेशा अपने पति की सेवा किया करती थी.
एक बार जालंधर ने तीनों लोकों पर अधिकार की इक्षा लेकर सभी देवताओं पर आक्रमण कर दिया. इधर वृंदा ने अपने पति के सामने यह प्राण लिया की जब तक आप युद्ध से वापिस नहीं आएंगे तब तक मै आपकी सलामती के लिए भगवान विष्णु की पूजा करुँगी. वृंदा के व्रत का प्रभाव इतना अधिक था की कोई भी देवता जालंधर को हरा पाने में समर्थ नहीं थे. जब सभी देवता हारने लगे तो वे भगवान विष्णु के पास अपनी आप बीती सुनाने के लिए चले गए. 
सबकी बात सुनने के बा भगवान विष्णु ने कहा की वृंदा मेरी परम भक्त है, और उसकी भक्ति ही उसके पति की शक्ति बनकर उसकी रक्षा कर रही है. मै अपनी भक्त के साथ अन्याय नहीं होने दे सकता. 
जब हालत बिगड़ने लगे तो सभी देवताओं के बार बार आग्रह करने पर भगवान विष्णु जालंधर का रूप लेकर वृंदा के पास चले गए. भगवान विष्णु को ही अपना पति समझकर वृंदा अपनी व्रत से उठ गई. पूजा से उठते ही वृंदा का संकल्प टूट गया और देवताओं ने जालंधर को मार गिराया. जालंधर का कटा हुआ सर वृंदा के सामने जा गिरा. जालंधर का कटा सर देखते ही विष्णु भी अपने वास्तविक रूप में आ गए और शर्म के कारण बिना कुछ बोले सर झुककर वृंदा के सामने खड़े रहे. भगवान विष्णु को सर झुकाये खड़े देख वृंदा सबकुछ समझ गई और भगवान विष्णु को श्राप देकर पत्थर का बना दिया. अपने पति को पत्थर बना देख माँ लक्ष्मी ने वृंदा के सामे हाथ जोड़कर अपने पति को पहले जैसा बनाने की विनती करने लगी. लक्ष्मी का विलाप देखकर वृंदा ने विष्णु को पहले जैसा बना दिया और अपने पति का कटा सर लेकर सती हो गई. 
वृंदा के सती होने के बाद विष्णु ने उसके भस्म से एक वृक्ष उत्पन्न किया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा की वृंदा को इस संसार में युगों युगों तक तुलसी के नाम से जाना जाएगा और हर घर के आँगन में एक पवित्र वृक्ष के रूप में पूजा जाएगा. बिना तुलसी के मई भोग ग्रहण नहीं करूंगा और वृंदा के श्राप के प्रभाव से बना मेरा शिला(पत्थर) रूप शालिग्राम के नाम से जाना जायेगा जो हमेसा तुलसी के साथ मौजूद रहेगा. 
तभी से देवउठनी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है और उनकी पूजा की जाती है. 

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