जय गणेश देवा. शुभता के प्रतिक गणेश, पर कब तक?


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नमस्कार दोस्तों, 
मित्रों जब हम कोई भी नया काम शुरू करते हैं तो हम उसे श्रीगणेश करना कहते हैं , दोस्तों जब भी कोई शुभ कार्य करना हो तो हम भगवान् गणेश को याद कर और उनका नाम लेकर शुरू करना ज्यादा शुभ समझते हैं. जब हम घर में कोई भी धार्मिक कार्य करते हैं तो सभी देवों से पहले श्री गणेश की पूजा करते हैं. और आप सभी ने शायद गौर नहीं किया हो पर जब हम उनका नाम या मन्त्र पढ़ते हैं तो सामने श्री लगते हैं. जैसे श्री गणेश या श्री गणेशाय नमः. दोस्तों यहाँ जो श्री लगा है वह हम जो किसी व्यक्ति को सम्बोधित करने के लिए जो श्री लगाते है वह श्री नहीं बल्कि स्वयं माँ लक्ष्मी का नाम है. 
आप सभी ने उस घटना का जिक्र तो सुना ही होगा जब भगवान् गणेश के पिता स्वयं शिव जी ने उनका सर, धड़ से अलग कर दिया था. पर माता पार्वती का प्रलाप सुनकर और उनका रौद्र रूप देखकर सब डर गए क्योंकि माता पार्वती ने अपने क्रोध से पुरे ब्रम्हांड का अंत कर देने की ठान ली थी.

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जिसने पूरी सृष्टि को जन्म दिया अगर वही उसका अंत करना चाहे तो भला उसे कौन रोक पाता. इसलिए माता पार्वती का क्रोध शांत करने के लिए भगवन शिव ने गजराज का शीश काटकर गणेश जी पर लगा दिया और उन्हें पुनः जीवित कर दिया. साथ में सभी देवताओं ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद दिया. और कहा की जहा भी किसी भी तरह का शुभ कार्य या पूजा पाठ होगा वहां सबसे पहले गणेश की आरती होनी आवश्यक होगी. अन्यथा किसी को भी उस सुबह कार्य का सुबह फल नहीं मिलेगा. उसी समय माँ लक्ष्मी ने कहा की वो हमेशा गणेश के साथ पूजी जाएंगी और जो भी गणेश के सात उनकी पूजा करेगा उसे धन संपत्ति और सम्पन्नता प्रदान करेंगी. इसीलिए गणेश के नाम के आगे माता लक्ष्मी का नाम श्री लगता है. 
दोस्तों हम सभी गणेश चतुर्थी से लेकर अगले ग्यारह दिन तक उनकी भाव भक्ति में डूबे रहते हैं. और ग्यारहवे दिन श्री गणेश जी को नदी या तालाब में विषर्जित कर देते हैं. पर दोस्तों वर्त्तमान शमय में जल संसाधन काफी कम और अशुद्ध हो चूका है. और श्री गणेश जी की मूर्ति बनाने में भी काफी विषैले केमिकल का उपयोग किया जाता है.
जब गणेश स्थापना की शुरुवात हुई तो इसका उद्देश्य लोगों एक करना था. इसलिए एक गाँव या शहर के किसी एक विशेष स्थान पर केवल एक ही गणेश की स्थापना की जाती थी वह भी शुद्ध मिटटी और प्राकृतिक रंगों से बानी हुई पर अब ऐसा नहीं है. अब विभिन्न केमिकल युक्त विषैले रंगों का उपयोग किया जाता है और मिटटी के जगह प्लास्टर ऑफ़ पैरिश का उपयोग किया जाता है. जो की पानी में आसानी से नहीं घुलता बल्कि काफी समय तक नदी और तालाब में तैरता रहता है. विषैले रंग पानी में मिलकर पानी को विषैला बना देते हैं तथा उस पानी में रहने वाले जीवों एवं उपयोग करने वाले लोगों की त्वचा और आँखों को काफी नुक्सान पहुंचते हैं. कई बार तो यह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का भी कारन बनते हैं.
अब आप ही बताइये की आप गणेश जी को अपने घर किसलिए स्थापित करते हैं . शुभता के लिए या रोग आमंत्रित करने के लिए. पर दोस्तों इसमें गणेश जी का नहीं दोष हमारा है. घर घर में गणेश बैठकर हम गणेश पर्व के मूल उद्देश्य को ही खंडित कर रहे हैं. बेहतर है की कम से कम एक हजार लोगों के बिच एक गणेश मूर्ति बैठायी जाये. और मूर्ति शुद्ध मिटटी की बनी है या नहीं इसकी पड़ताल कर लें. कोशिश करें की मूर्ति केवल नदी में ही विषर्जित हो.
सबसे खास बात यह है की मूर्ति विषर्जन शांत स्वाभाव से हो. हुड़दंग बाज़ी करके, शोर मचाकर और नशाखोरी करके नहीं. जैसा की आजकल आमबात हो गया है. दोस्तों क्या आपको नहीं लगता की ऐसा असामाजिक कार्य करके हम गणेश जी को नाराज कर लेते हैं. और फिर हम कोशते हैं की गणेश जी ने इतना पूजा पाठ करने के बाद भी हमें कुछ नहीं दिया. तो दोस्तों एक बार मेरी इस बात पे गौर जरूर कीजियेगा. धन्यवाद्. 

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